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मैं साहित्यकार हूँ ॰॰॰

मै कमजोर हूँ ताकत नहीं है मुझमे, खडे होने की इस नपुंसक समाज के समक्ष अपाहिज हो गया हूँ मैं तभी तो रपटकर चलता हूँ कागज पर कलम का सहारा लेकर खडा होता हूँ अपनी ताकत खो चुका हूँ या फिर कलम की ताकत जान चुका हूँ कल बाजार मे मैने देखा बिक रही थी बहन की चुडियां माँ का मंगलसुत्र बच्चो का भविष्य और बीवी की अस्मत भी मगर मै कुछ नहीं बोला; खामोश रहा मेरे लहु मे उबाल नहीं आया बस चंद कागज के टुकडे और कलम खरीदकर चुपचाप लौट आया और अब लिखने बैठा हूँ जो कुछ देखा था सोचता हूँ जब ये पंक्तियां जन-जन तक पँहूचेगी मै मजबुत हो जाऊँगा अभी मै दुबककर बैठा हूँ बहार जो हो रहा है ठीक वही मै अन्दर कर रहा हूँ इस कागज पर और जब-जब भी मौका मिलेगा बाहर जाने का इसी तरह लिखता रहुँगा मगर लड़ नहीं सकता क्योंकि मैं कमजोर हूँ मैं साहित्यकार हूँ ॰॰॰

वाह काविराज साहित्यकार की मनःस्थिति को बड़ी गहराई से शब्दों में उकेरा है।
पर किसने कहा आप कमजोर हैं इतना अच्छा लिखकर भी तो आप समाज को एक नयी दिशा दे रहे हैं।

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मेरा परिचय

  • नाम : गिरिराज जोशी
  • ठिकाना : नागौर, राजस्थान, India
  • एक खण्डहर जो अब साहित्यिक ईंटो से पूर्ननिर्मित हो रहा है...
मेरी प्रोफाईल

पूर्व संकलन

'कवि अकेला' समुह

'हिन्दी-कविता' समुह

धन्यवाद

यह चिट्ठा गिरिराज जोशी "कविराज" द्वारा तैयार किया गया है। ब्लोगर डोट कोम का धन्यवाद जिसकी सहायता से यह संभव हो पाया।
प्रसिद्धी सूचकांक :