बुधवार, सितंबर 27

ख्वाबों की रानी

वो बला सी खूबसूरत, ख्वाबों की रानी है थोड़ी नटखट, थोड़ी मासूम, थोड़ी सी सयानी है। 'सुमन' सा चेहरा, खुशबु सा बदन उसका मोहब्बत की मूरत वो थोड़ी सी दिवानी है। आँखे नशीली, होंठ रसीले और खाक करता हुश्न नाजुक सा बदन उसका उफ् क्या मदमस्त जवानी है। चाहत की अंगड़ाई लेती फिर पलटकर मुस्कुराती है बाहों में है जन्नत उसके वो नजरों से शर्माती है। सपनों में करती है मुझसे प्यारी-प्यारी बातें मेरे सोये रहने के पिछे बस इतनी सी कहानी है।

गुरुवार, सितंबर 21

सिर्फ तुम्हारे लिए ...

जब से तुम्हे देखा है

जी करता है

कुछ ना कुछ लिखूँ

तेरे गालों पे लिखूँ

चाहें बालों पे लिखूँ

तेरे लबों पे लिखूँ

चाहे नैनों पे लिखूँ

मगर कुछ ना कुछ लिखूँ

ऐसा,

जैसा किसी ने ना लिखा हो

एकदम नया, एकदम फ्रेश

तेरा चेहरा फूलों की तरह खूबसूरत है

तेरे होंठ गुलाब की पंखुड़ियों से नरम है

तेरे गालों के उभार, मानो छोटे-२ पर्वतों की शिखाएँ है

तेरी आँखे झीलों सी निर्मल, समुन्द्र सी गहरी है

तेरी बातों में एक अजब सी जादुगरी है

मगर

यह सब तो पहले ही लिख चुके हैं

बहुत से कवि

मैं तो लिखना चाहता हूँ

कुछ नया

जो सिर्फ तुम्हारे लिए हो

सिर्फ तुम्हारे लिए

जैसे मैं हूँ

सिर्फ तुम्हारे लिए

मगर जानें क्यूँ

कुछ भी नहीं सूझ रहा

मेरी कलम भी आज खामोश है

शायद नहीं बचा

अब कुछ भी नया

लिखनें के लिए

या फिर

तुम्हे शब्दों में पिरो पाना संभव नहीं

कम से कम मेरे लिए

मगर फिर भी मैं कोशिश करूंगा

कुछ ना कुछ लिखने की

तुम्हारे लिए

क्योंकि मेरा जी करता है

लिखूँ

कुछ ना कुछ नया

तुम्हारे लिए

सिर्फ तुम्हारे लिए

मंगलवार, सितंबर 12

दो क्षणिकाएँ

(1)

सड़क किनारे

पत्थर की दिवार

जिसके निचे लेटा

अपंग/अंधा/भूखा/लाचार

और पास से गुजरते

पत्थरदिल इंसान ॰॰॰

(2)

वृक्ष के किनारे लेटा

भूख से बिलखता बालक

पास ही

बदहाल;फटेहाल

मजदूरी करती

माता ॰॰॰

शुक्रवार, सितंबर 8

कुछ हाइकु ॰॰॰

दोस्तों, आज हिंदी साहित्य में हाइकु की भरपूर चर्चा हो रही है, सो मैने भी कुछ प्रयास किया है।
॰॰॰॰ प्रितम के लिए ॰॰॰॰
खुबसुरत तेरी आंखे सबसे मनमोहक
आपकी आँखे पतझड़ में खिला जैसे सुमन
तेरा चेहरा खुबसुरत जैसे मेरा हाइकु
आपको देखा हलक से निकला मेरा हाइकु
मेरी बगीया आओ फिर महके तुम प्रितम
यकिं है तभी करता इंतजार तुम आओगे
॰॰॰॰ हे आरक्षण ॰॰॰॰
पेट में कैंची भूल गये साहब हे आरक्षण
दो व दो पांच सिखाते माड़साब हे आरक्षण
वोट बैंक को ललचाते नेताजी लो आरक्षण
सुनाते जज आरक्षक को फांसी हे आरक्षण
चोर डकेत बन गए सांसद हे आरक्षण
॰॰॰॰ देश की दशा ॰॰॰॰
गेंद व बल्ला सौ करोड़ मिलके करते हल्ला
खा रहे देश मिलकर सांसद जनता मौन
बनेगी दिल्ली गरीबो की कीमत मानो पेरिस
आस में बैठा निकलेगा सूरज वो राजस्थानी
(राजस्थान में बाढ़ का आलम है।)

रात अंधेरी बिकने को तैयार पैसों से प्यार

॰॰॰॰ नारी ॰॰॰॰

बेचदी हया अब तु बोल कैसे नारी अबला

तोड़ मर्यादा दिखा रही बदन आज की नारी

दिखा आबरू जीत रही मैडल मिस बिकनी

रह रहकर कब लौटेगी सीता पुछता दिल

॰॰॰॰ चलते-चलते यूंही ॰॰॰॰
जरा सी छींक चार दिन की छुट्टी बहाना रेडी
सब उदास हो गया है जब से कुत्ता बिमार

पढ़ा इसे तो निकला ज़िगर से मेरा हाइकु

अब समझा मुश्किल है कैसे लिखना हाइकु
मैं हीरा तो हूँ मगर जमीं तले तराशे कौन

सोमवार, सितंबर 4

हिन्दुस्तानी नेता

पहले धर्म

अब वर्ण

और कल जातिगत बटवारा करेगा

फिर

उपजाति;गौत्रो की

धज्जियाँ उड़ाकर

एक हाथ से दुजे को कटवायेगा

लगता है

एक दिन

वोट के चक्कर में

हिन्दुस्तानी नेता

हर एक वोटर को

सौ टुकड़ो में बंटवायेगा

और

एक की जगह

सौ वोट डलवायेगा ॰॰॰

शनिवार, सितंबर 2

वो जमीं का टुकड़ा ...

कट गये कितने हजार धमाको से उजड़ा घर संसार बरसो से चला आ रहा है खेल खुनी जाने कितनी हो चुकी है विधवाऎं और गोदे सुनी मगर जस का तस पड़ा है वहीं का वहीं वो जमीं का टुकड़ा ...

मेरा परिचय

  • नाम : गिरिराज जोशी
  • ठिकाना : नागौर, राजस्थान, India
  • एक खण्डहर जो अब साहित्यिक ईंटो से पूर्ननिर्मित हो रहा है...
मेरी प्रोफाईल

पूर्व संकलन

'कवि अकेला' समुह

'हिन्दी-कविता' समुह

धन्यवाद

यह चिट्ठा गिरिराज जोशी "कविराज" द्वारा तैयार किया गया है। ब्लोगर डोट कोम का धन्यवाद जिसकी सहायता से यह संभव हो पाया।
प्रसिद्धी सूचकांक :