गज़ल
यादों के पन्नो को पलटने से क्या होगा
नज़रों में ख्वाबो को संजोने से क्या होगा
अब आवाज देकर बैचेन ना कर उसे
आ ना सके जो बुलाने से क्या होगा
भूल पाना वस मे नहीं जानता है जब
दिल से तस्वीर यों मिटाने से क्या होगा
प्यास बुझेगी उसकी जब लहू से तेरे
तन्हाई को आंसू ये पिलाने से क्या होगा
कागज़ पर उकेर कर नाम यों 'कविराज'
बार-बार याद उसे करने से क्या होगा
यादों के पन्नो को पलटने से क्या होगा
नज़रों में ख्वाबो को संजोने से क्या होगा