विरोधाभास...
(१)
कविताऎं लिखना कौन चाहता है...
कलम को घिसाना कौन चाहता है...
महफ़िल में मुस्कुराना पड्ता है यहां...
वरना कागज़ को भिगोना कौन चाहता है...
हर पल को रखा हमने डायरी मे संजोके...
वरना "कविराज" कहलाना कौन चाहता है...
(२)
कविताऎं लिखना कौन नहीं चाहता...
कलम को घिसाना कौन नही चाहता...
खुशी के पल है यहां सिर्फ़ चार
उन्हे संजोके रखना कौन नहीं चाहता...
हर दिल मे होती है उमंगो की कुश्ती
फ़िर "कविराज" कहलाना कौन नहीं चाहता...