शत-शत नमन!
मृत्यु द्वार तक पंहूच चूके अपने आप मे असहाय आंतरिक आंधि के हिलोरो से टकराकर चकनाचूर हो रहे मेरे विचारो को आपने अपने अन्दर समेटकर मुझे एंव मेरे विचारो को जीवनदान दिया है अत: हे लेखनी और घास-फूस के पूर्नउत्थान से बने उसके हमसफ़र कागज़ आप दोनो को "कविराज" का शत-शत नमन !