सिर्फ तुम्हारे लिए ...
जब से तुम्हे देखा है
जी करता है
कुछ ना कुछ लिखूँ
तेरे गालों पे लिखूँ
चाहें बालों पे लिखूँ
तेरे लबों पे लिखूँ
चाहे नैनों पे लिखूँ
मगर कुछ ना कुछ लिखूँ
ऐसा,
जैसा किसी ने ना लिखा हो
एकदम नया, एकदम फ्रेश
तेरा चेहरा फूलों की तरह खूबसूरत है
तेरे होंठ गुलाब की पंखुड़ियों से नरम है
तेरे गालों के उभार, मानो छोटे-२ पर्वतों की शिखाएँ है
तेरी आँखे झीलों सी निर्मल, समुन्द्र सी गहरी है
तेरी बातों में एक अजब सी जादुगरी है
मगर
यह सब तो पहले ही लिख चुके हैं
बहुत से कवि
मैं तो लिखना चाहता हूँ
कुछ नया
जो सिर्फ तुम्हारे लिए हो
सिर्फ तुम्हारे लिए
जैसे मैं हूँ
सिर्फ तुम्हारे लिए
मगर जानें क्यूँ
कुछ भी नहीं सूझ रहा
मेरी कलम भी आज खामोश है
शायद नहीं बचा
अब कुछ भी नया
लिखनें के लिए
या फिर
तुम्हे शब्दों में पिरो पाना संभव नहीं
कम से कम मेरे लिए
मगर फिर भी मैं कोशिश करूंगा
कुछ ना कुछ लिखने की
तुम्हारे लिए
क्योंकि मेरा जी करता है
लिखूँ
कुछ ना कुछ नया
तुम्हारे लिए
सिर्फ तुम्हारे लिए