कुछ हाइकु ॰॰॰
दोस्तों,
आज हिंदी साहित्य में हाइकु की भरपूर चर्चा हो रही है, सो मैने भी कुछ प्रयास किया है।
॰॰॰॰ प्रितम के लिए ॰॰॰॰
खुबसुरत
तेरी आंखे सबसे
मनमोहक
आपकी आँखे
पतझड़ में खिला
जैसे सुमन
तेरा चेहरा
खुबसुरत जैसे
मेरा हाइकु
आपको देखा
हलक से निकला
मेरा हाइकु
मेरी बगीया
आओ फिर महके
तुम प्रितम
यकिं है तभी
करता इंतजार
तुम आओगे
॰॰॰॰ हे आरक्षण ॰॰॰॰
पेट में कैंची
भूल गये साहब
हे आरक्षण
दो व दो पांच
सिखाते माड़साब
हे आरक्षण
वोट बैंक को
ललचाते नेताजी
लो आरक्षण
सुनाते जज
आरक्षक को फांसी
हे आरक्षण
चोर डकेत
बन गए सांसद
हे आरक्षण
॰॰॰॰ देश की दशा ॰॰॰॰
गेंद व बल्ला
सौ करोड़ मिलके
करते हल्ला
खा रहे देश
मिलकर सांसद
जनता मौन
बनेगी दिल्ली
गरीबो की कीमत
मानो पेरिस
आस में बैठा
निकलेगा सूरज
वो राजस्थानी
(राजस्थान में बाढ़ का आलम है।)
रात अंधेरी बिकने को तैयार पैसों से प्यार
॰॰॰॰ नारी ॰॰॰॰
बेचदी हया अब तु बोल कैसे नारी अबला
तोड़ मर्यादा दिखा रही बदन आज की नारी
दिखा आबरू जीत रही मैडल मिस बिकनी
रह रहकर कब लौटेगी सीता पुछता दिल
॰॰॰॰ चलते-चलते यूंही ॰॰॰॰
जरा सी छींक
चार दिन की छुट्टी
बहाना रेडी
सब उदास
हो गया है जब से
कुत्ता बिमार
पढ़ा इसे तो निकला ज़िगर से मेरा हाइकु
अब समझा
मुश्किल है कैसे
लिखना हाइकु
मैं हीरा तो हूँ
मगर जमीं तले
तराशे कौन
कवि अकेले जी,
आपने भी खूब कही,
ये मात्र कुछ हाइकु नहीं
पूरी खान है,
हाईकु लिखना अपने आप में
विद्वत्ता की पहचान है.
-रेणू आहूजा.
- पà¥à¤°à¥à¤·à¤ renu ahuja | 9/08/2006 06:46:00 pm