गुरूदेव :-
गिरिराज जी,
व्यक्तिगत ईमेल कर रहा हूँ:
यगण मगण तगण रगण जगण भवण नगण सगण
हो आठ गण यति गति ज्ञान, तब कहलाए चरण
तब कहलाए चरण, तुकान्त रोला मात्रा हो
चरण भाव-युक्त व मात्रा पूरी चौबीस हो
बुरा फंसा "कविराज" नचायेंगे तुझको गण
कुण्डलिया बाद में सिखना पहले मगण-यगण
दोहा देखें:
पहले परिभाषा: इस छ्न्द के पहले-तीसरे चरण में १३ मात्रायें और दूसरे-चौथे चरण में ११ मात्रायें होती हैं. विषय(पहले तीसरे)चरणों का आरम्भ जगण नहीं होना चाहिये और सम (दूसरे-चौथे) चरणों का अन्त लघु होना चाहिये.
अब आपका दोहा:
यगण मगण तगण रगण जगण भवण नगण सगण
हो आठ गण यति गति ज्ञान, तब कहलाए चरण
पहला चरण कहीं भी खतम करें, वो १३ मात्रायें नहीं देता. बल्कि १२ ही दे रहा है तो दूसरा चरण भी १२ मात्रायें ही देगा. तीसरा चरण जहां १४ मात्रायें दे रहा है, वहीं चौथा १०. हांलाकि मात्राओं कि कुल संख्या २४ हो जा रही है, मगर वो दोहे की परिभाषा में पूर्ण खरा नहीं उतरता. सिर्फ़ आपकी जानकारी के लिये बता रहा हूँ, कृप्या अन्यथा न लें. :)
आपके लिये यह लिखा है, यह कुण्डली देखें, मात्रा और नियमों के हिसाब से शुद्ध है: :)
सीख गणों की राखिये , ऐसन कहे विधान
मात्रा बस मिलती चलें, हो जायेगा काम
हो जायेगा काम फिर जो कुण्डली रचना
भाव पूरे आ गये, यह ध्यान में रखना
कहत समीर कि जानो ऐसी हमारी रीत
गुरुदक्षिणा दें कैश में जब जायेंगे सीख.
सादर,
समीर
चेला :-
आदरणीय गुरूदेव,
सादर प्रणाम!!! आपने व्यक्तिगत ईमेल कर जिस व्यक्तित्व का परिचय दिया है, उससे आपको गुरूदेव कहते हुए सीना फक्र से और चोड़ा हो गया है।जिस तरह हमारे बिच संवाद चिट्ठे पर चल रहा था उससे मुझे इस तरह के व्यक्तिगत ईमेल की कदापि आशा नहीं थी, शायद यही फर्क होता है परिपक्वता और अपरिपक्वता में। जहाँ मैं मात्र चंद घंटो में ही विचलित होकर आपको सार्वजनिक ई-मेल कर गया वहीं आपने सार्वजनिक रूप से अब तक मेरी पिठ थमथपाई और मेरी कमियों को दर्शाया व्यक्तिगत ईमेल के जरिये।
वैसे यदि आप ये मैल मेरे चिट्ठे पर टिप्पणी के रूप में या अपने चिट्ठे पर मेरी अगली क्लाश के रूप में लिखते तो भी मुझे तनिक भी बुरा नहीं लगता क्योंकी यह मेरे साथ-साथ अन्य चिट्ठाकारों को भी बहूत कुछ सिखा जाता और मैने भी इसी सोच से सार्वजनिक ई-मेल लिखा था। हालांकि आपके व्यक्तित्व को देखते हुए मुझे पूर्णविश्वास है कि आपने बुरा नहीं माना होगा फिर भी क्षमा याचना करता हूँ। क्षमा करें।
आपकी इस ज्ञानवर्धक क्लास के सम्मान में, मैं अपनी उसी कुण्डली कों पुनः सुधारकर आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ, कृपया पुनः अवलोकन कर उचित मार्गदर्शन करें -
यगण मगण तगण सिखिये, और सब आठों गण
आठों गण यति गति ज्ञान, तब कहलाता चरण
तब कहलाता चरण, तुकान्त रोला ज्ञान हो
चरण भाव-युक्त व मात्रा पूरी चौबीस हो
बुरा फंसा "कविराज" नचायेंगे तुझको गण
कुण्डलिया बाद में सिखना पहले मगण-यगण
और अन्त में धन्यवाद अर्पित करते हुए आपसे आपके व्यक्तिगत ईमेल को सार्वजनिक करने की इजाजत चाहूँगा, यकिं मानिये इसके पिछे मेरी यह कतई मंशा नहीं है कि मेरे चिट्ठे पर आवागमन बढ़े, बल्कि मैं चाहता हूँ यह गुरू ज्ञान सभी चिट्ठाकारों को नसीब हो। यदि यह मैल आप अपने चिट्ठे पर सार्वजनिक करें तो मुझे और भी ज्यादा खुशी होगी।
आप बस इसी तरह सिखाते रहें, हम हमेशा कुछ ना नया सिखने को लालायित रहते हैं।
प्रणाम!!!
- गिरिराज जोशी "कविराज"
गुरूदेव :-
प्रिय गिरिराज जी,
अरे, आप तो मेरे अनुज हो और मैने तो वही किया जो एक अनुज के साथ किया जाता है. मुझे कोई आपत्ति नहीं है.आप चाहो तो मेरे जवाब को, साथ मे बाद मे जो कुण्डली भेजी और अपना जवाब मिलाकर एक पूरी पोस्ट बनाकर पोस्ट कर लो.पूरा जवाब शायद सबके लिये आवश्यक न हो तो इसे जिस तरह कांट छांट कर एक पोस्ट का रुप देना चाहो, दे लो. शायद कुण्डली सीखने की इच्छा रखने वालों के काम आये और मनोरंजन तो बोनस में हो ही जायेगा. वैसे मै स्वयं कुण्डली का बहुत बड़ा ज्ञाता नहीं हूँ बस तुम्हारी तरह एक जिज्ञासु हूँ और हमेशा नियमों के तहत लिखता भी नहीं हूँ. इसीलिये उसे हमेशा कुण्डलिनुमा ही कहा है. भविष्य में भी अगर अपने अल्प ज्ञान से किसी तरह सहयोगी हो सकूँ तो यह मेरा सौभाग्य होगा.
शुभकामनाओं सहित,
समीर लाल
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और अब अन्त में कुछ कुण्डलियाँ अवलोकनार्थ प्रस्तुत है जो मैने गुरूदेव और रवि रतलामी की टिप्पणियों के प्रतियुत्तर में इस पोस्ट पर रचनाजी की टिप्पणी से प्रभावित होकर लिखी हैं -
(1)
कुण्डलियाँ बहुत नियमबद्ध पिछा छोडो इसका
रतलामीजी कर गये, टिप्पणी ऐसी चस्पा
टिप्पणी ऐसी चस्पा कि अपने नियम बनाओ
गज़ल बन गई व्यंजल तुम भी कुछ दिखालाओ
बनाओ नियम "कविराज", पार लगाओ नय्या
नियम तोड़कर बना लो तुम अपनी कुण्डलियाँ
(2)
नियम ग़ज़ल के तोड़कर बना दिया जो व्यंज़ल
ग़ज़ल की दुनियाँ में तो मची होगी हलचल
मची होगी हलचल कि ग़ज़लकार गुस्सा किये
या बतलाओ तो जो वो संग व्यंज़ल हो लिये
पुछत "कविराज" अब सुझाएँ क्या रखु मैं नाम
तोड़कर जो लिख भी दें, अब नये-नये नियम
(3)
"काका" की हैं "गुरूदेव", सचमुच कलम कमाल
राह आप दिखाईये, हमको चलनी चाल
हमको चलनी चाल के लिखुँगा तोड़-मरोड़
आप ज्ञान बरसाएँ लेखनी दूँगा मोड़
चिन्ता काहे की करें जब आप बनें आका
रस्ता पहले ही दिखा दिए "फुलझडिया काका"
कविराज जी, क्या आपकी १ नम्बर कुण्डली सुधारने का प्रयत्न करुँ, आशा है अन्यथा न लेंगे साथ ही जानकारी भी हो जायेगी. वैसे मुझे खुद जितना पता है, उसके आधार पर छेडछाड कर रहा हूँ आपकी कुण्डली से. यह मात्र एक प्रयास है:
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(१३,११)
११११२ ११ १११ २, २ १२ २ १२१ (अंत लघु से)
कुण्डलियाँ लिख नियम से, या पिछा ले छुडाय
रवि रतलामी दे रहे, करत कमेंट इ राय.
११२२ २ २ १२, १११ १२१ १ २१(अंत लघु से)
(१३,११)
करत कमेंट इ राय कि अपने नियम बनाओ
१११ १२१ १ २१ १ ११२ १११ १२२ (२४)
गज़ल बनाय व्यंजल तुम भी कुछ दिखालाओ
१११ १२१ ११११ ११ २ ११ १२२२ (२४)
कहत यही "कविराज" कि पार लगाओ नय्या
१११ १२ ११२१ १ २१ १२२ ११२ (२४)
नियम तोड़ बनाय लो तुम अपनी कुण्डलियाँ
१११ २११ १२१ २ ११ ११२ ११११२ (२४)
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अब बाकी आप देखिये, शायद मदद मिले.
एक बार फिर, यह मैने अपनी समझ से लिखा है, हो सकता है कोई कुण्डली ज्ञानी और प्रकाश डाल सके.
- पà¥à¤°à¥à¤·à¤ Udan Tashtari | 10/12/2006 10:13:00 pm
धन्य हो आप गुरु- चेला।
भैया हमें तो लगता है पहले गणित सीखना होगी
- पà¥à¤°à¥à¤·à¤ Sagar Chand Nahar | 10/13/2006 06:22:00 pm