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एक पाती, समीर भाई के नाम

आदरणीर समीरजी, सादर प्रणाम!

आपकी कुण्डलियाँ पढ़-पढ़कर हमारा मन व्याकुल हो उठा है कुण्डलियाँ लिखने को, मगर हम ठहरे इसमे बिलकुल अनाड़ी, क्या करें???
सोचा कविताएँ लिख लेता हूँ, हाइकु लिख लेता हूँ तो कुण्डलिया क्यों नहीं लिख सकता?
बस फिर क्या था आपकी सारी कुण्डलिया उठा-उठा कर खंगालने लगे, शायद कोई ओर-छोर पता लग पाये, हम कोशिश में लगे ही थे कि प्रतिक भाई "ऑनलाईन" दिखे तुरन्त सवाल ठोक दिया -
"कुण्डलियाँ कैसे लिखे?"
प्रतिक भाई बोले -
"ज्यादा नहीं पता मगर इतना बता सकता हूँ कि जिस अक्षर से शुरू करो खत्म भी उसी पर करो बाकि "डिटेल" में समीर भाई से जानों और हाँ कुण्डलियाँ लिखने में दिक्कत आए तो "काका" की तरह फुलझड़ियाँ लिखो, टेंशन काहे का!!!"
अब अगला नम्बर लगा अनुप भाई का। जैसे ही हमे "अनुप की डाक" "ऑनलाईन" दिखी, वही सवाल उनको भी आदर सहित प्रेषित कर दिया मगर यह क्या??? अनुप भाई तो सिधे ही कल्टी मार गये, बोले यह लो समीर भाई का "आई डी" वो बेहतर बतायेंगे। हमें तुरन्त आपको "गुगल चैट" पर गपशप के लिए "इनविटेशन" भेज दिया मगर आप हैं कि हमारे "इनविटेशन" को अभी तक "ऐसेप्ट" ही नहीं किए।
खैर हम भी हार मानने वाले कहाँ थे, वही सवाल जीतु जुगाड़ी जी (माफ करना चौधरीजी) को भी ठोक दिया मगर वो भी समीरलाल-समीरलाल की रट लगा बैठे। हमने बताया आप "ऑनलाईन" नहीं है तो जवाब मिला "मैल" ठोक दो, आईडिया अच्छा लगा मगर आज चिट्ठे पर लिखने को कुछ था नहीं तो सोचा क्यों ना "मैल" चिट्ठे पर ही ठोक दिया जाये। अब आप बुरा थोडे ही ना मानेंगे॰॰॰॰
अब बिना कुण्डली के आपको "मैल" भेजूँगा तो आप हमें ज्ञान थोड़े ही ना देंगे सो अन्त में एक कुण्डली ठोके जा रहा हूँ, अब कोई गलती भी है तो टैंशन काहे का, कुण्डली किंग को जो गुरू बनाने जा रहें है, धिरे-धिरे अपने आप सुधार हो जायेगा और तब तक सुधार करने की जिम्मेदारी आप संभालें।
और अन्त में आपके अवलोकनार्थ हमारी कुण्डली -
करने लगे आरक्षित अर्जुनसिंह कण-कण
ब्रह्म-पुत्र भी सड़कों पर, दो हमकों आरक्षण
दो हमकों आरक्षण वरना सिंहासन डोलेगा
गुर्जर कहते हम नहीं अब हथियार बोलेगा
कहे "कविराज" भारत में लगी प्रतिभा मरने
जातिगत समिकरणों पे लगे नेता राज करने
आदर सहित -
गिरिराज जोशी "कविराज"

तकनीकी तौर पर तो मुझे नही पता, लेकिन एक पाठक के तौर पर मुझे आपकी कुंडली अच्छी लगी.

कुण्डली के मामले में अपने अल्पज्ञानी हैं. प्रेम से कुण्डली को जलेबी भी कह लेता हूँ.
जहाँ तक मुझे ज्ञात हैं, कुण्डली में पहले एक दोहा होता हैं तथा जहाँ से शुरू होती हैं उसी शब्द पर खत्म होती हैं. बस अपना ज्ञान इतना ही हैं.
मुझे लगता हैं, आपकी कुण्डली ठीक लग रही हैं. लगे रहो...
समीरलालजी को गुरू के रूप में ग्रहण कर ले तथा गुरूदक्षिणा की अग्रिम व्यवस्था भी करें.

हूं... कुण्डली तो अच्छी ही है।
क्या जरूरी है कि हर एक शिष्य को द्रोणाचार्य मिले ही, समीर जी सिखाने को राजी ना हो तों आप उनका चिट्ठा खोलकर कुण्डली लिखने का प्रयास करें, बिल्कुल एक्लव्य की तरह!
हाँ गुरू दक्षिणा देते समय जरा ध्यान रखना!

समीरजी का असर दिखने लगा है... :

बेहतर शुरूआत है.. बहुत अच्छे

बढिया शुरुआत । ये तो बिना गुरुज्ञान के ही हो गया।
जब ज्ञानदान होगा उसके बाद क्या होगा

जोशीजी ये कुण्डली क्या बला है अपन को नहीं पता पर आप जो भी लिखते हैं अच्छा लगता है।

देखा था गुगल चैट पर, कल ही आपको कविराज
पेंडिंग पड़ा निवेदन भी, एक्सेप्ट कर लिया आज.
एक्सेप्ट कर लिया आज कि अब हम लिखेंगे लेख
कुण्ड़ली पर जो अल्प ज्ञान है तुम भी लेना देख
कहे समीर कि हमरा तो सिर्फ़ कुण्ड़लीनुमा लेखा
नियम लगे हैं बहुत से, जब असल कुण्डली देखा

--आज शाम को आपको कुण्ड़ली के नियमों पर एक लेख समर्पित कर रहा हूँ.तैयारी रखें.:)
--समीर लाल 'समीर'

ऐसे खुले में गुरू को दोष दोगे तो गुरू कितना भी महान हो खुश नहीं होगा. यह तो समार लाल जी जैसे गुरू हैं जो कुछ नहीं कहकर खुश हैं(हमारे साथ का असर होगा कुछ न कुछ) अब जब वो लिख्नने के लिये तत्पर हैं तो हम क्या बतायें!

कुंडली सागर में आपका स्वागत् है. शुभकामनाएँ.

आपने Permanent Link के लिए 'प्रमालिंक' लिखा है - उसकी जगह 'स्थाई कड़ी' लिखें तो ज्यादा सही होगा.

गिरधर की पहले पढ़ो कुण्डलियां श्रीमान
छंद शास्त्र देगा तुम्हें, कुण्डलियों का ज्ञान
कुण्डलियों का ज्ञान, मात्रा गिनना सीखें
तभी छंद कुण्डलियों वाला सच्चा दीखे
सुन कविराज, करो अभ्यास नित्य लिख लिख कर
एक बार फिर दोहराता हूँ, पढ़ लो गिरधर

गिरधर की पहले पढ़ें, कुण्डलियां श्रीमान
छंद - शास्त्र से प्राप्त कर ल्रं बाकी का ज्ञान
लें बाकी का ज्ञान मात्रा गिनना सीखें
तभी कुण्डली रचना नियमबद्ध हो दीखे
सुन कविराज करो अभ्यास नित्य लिखलिख कर
एक बार फिर दोहराता हूँ, पढ़ लो गिरधर

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मेरा परिचय

  • नाम : गिरिराज जोशी
  • ठिकाना : नागौर, राजस्थान, India
  • एक खण्डहर जो अब साहित्यिक ईंटो से पूर्ननिर्मित हो रहा है...
मेरी प्रोफाईल

पूर्व संकलन

'कवि अकेला' समुह

'हिन्दी-कविता' समुह

धन्यवाद

यह चिट्ठा गिरिराज जोशी "कविराज" द्वारा तैयार किया गया है। ब्लोगर डोट कोम का धन्यवाद जिसकी सहायता से यह संभव हो पाया।
प्रसिद्धी सूचकांक :