« मुख्य पृष्ठ | मेरे बिखरे शब्दों की समीक्षा - २ » | जय हास्य, जय नेता!!! - २ » | जय हास्य, जय नेता!!! » | दिवाली आने वाली है ॰॰॰ » | गुरू-चेला संवाद » | गुरूदेव प्रणाम!!! » | एक पाती, समीर भाई के नाम » | मेरे बिखरे शब्दों की समीक्षा - १ » | औरत ॰॰॰ » | ख्वाबों की रानी »

मेरे बिखरे शब्दों की समीक्षा - ३

"मेरे बिखरे शब्दों की समीक्षा" में मैं इस बार लेकर आया हूँ हिन्दी-कविता "कम्यूनिटी" (ऑरकुट) में शुभाषिश पांडे के फ़ोरम "क्रांति चाहिये देश को" पर मित्र शुभाषिश पांडे (इस रंग में) और मेरे (इस रंग में) बिच आरक्षण को लेकर हुई काव्यमय बहस -
उबल रहा अब रक्त रगो में
फिर इतिहास बनाने को
कलम छोड़ बंदूक उठा लो
इंकलाब लिख जाने को
देश बांटने वालों तुमको
खून से हम नहला देंगे
इस आरक्षण के नाम को ही
हम स्वीधान से मिटा देंगे अगर सामने आये तो
फिर तुम अर्जुन हो या मनमोहन
इस बार हमें जो रोका तो
जिंदा तुम्हे जला देंगे
उबल रहा जो रक्त रगो में ज़रा उसको समझाओ खून खराबे से नहीं तुम कोई नया इतिहास बनाओ कलम की ताकत पहचानो मत छोड़ इसे बंदूक उठाओ देश बांटने वालो को तुम इसकी ताकत तो दिखलाओ
इस आरक्षण के नाम को है हमको स्वीधान से मिटाना पर विदित रहे इसके लिए नहीं और हथियार उठाना
"गांधीजी" की अहिंसा को ज़रा फिर से याद करो मत बात-बात पर फिर से तुम "भगतसिंह" बनो आरक्षण को हमें मूल से मिटाना है देश को भी अपने बंटने से बचाना है इसके लिए जरूरी है सबको साथ मिलाना कलम ही कर सकती ऐसा इसको मत गिराना
कलम फिर से उठाना बंधु कलम फिर से उठाना ॰॰॰ "गांधीजी" की तरह तुम भी देश को मत बरबाद करो कुछ करना ही है अगर तुम्हे तो भगतसिंह को याद करो
कब तक हाथ जोड़ के यूँही मांगोगे अपने अधिकार को जब खत्म हो जाएगा सबकुछ तब ढ़ुंढ़ोगे किस आधार को
दुश्मन की बंदूक के आगे सीना बेवकूफ है तानते अरे लातों के भूत भला कभी बातों से है मानते
धैर्य वहीं तक अच्छा है जो लक्ष्य में सदा सहायक हो उसके साथ वैसा ही शुलूक करो जो जिस बात के लायक हो
स्वयं राम भगवान को तब मिली राह समुन्द्र से सूखने के डर से जब कांप उठा खुद अन्दर से "राष्ट्रपिता" के बारे में ख्यालात आपके सही नहीं है "भगतसिंह" भी कहते थे उनका कोई सानी नहीं है
पूजा करते थे वो बापू की याद तुम्हे दिलाता हूँ आज उन महान शहीदों की फिर से पहचान कराता हूँ
स्वाभिमानी राष्ट्रभक्त वो स्वतंत्रता उनका लक्ष्य था हर कोई अपने-अपने सिर पर कफ़न पहनकर चलता था
हथियारों से खेलते होली ऐसा युवाओं में माद्दा था पर याद रखो उस वक्त हमें फिरंगियों से लड़ना था
अब बात नहीं है वैसी ना ही खतरा किन्ही औरों से हमें बचाना है देश को अब अपने ही विभीषणों से
भाई गर अपना हो जाए बागी, कैसे उसको काट दें आवेश में आकर बोलो कैसे लहू उसका बहा दें
मिलजुल कर रहना हमको संगठित फिर से होना है भाई-भाई हैं हम सब यह बात सबको समझाना है
इसीलिए कहता हूँ बंधु मत आवेश में आओ फिर से कलम उठाओ और नया संविधान बनाओ
फिर से कलम उठाओ बंधु फिर से कलम उठाओ "राष्ट्रपिता" कहते सब उसको सत्य ही उसका नारा है पर एक सच तो यह भी है कि वो "भगतसिंह" का हत्यारा है
एक बार वो कह देते तो फांसी ना होती क्रांतिवीर की पर खुद को सही दिखाने को बली चढ़ा दी उस शूरवीर की
यह "गांधी" ने कब मेरे देश को अंग्रेजो से छुड़ाया है बस उनकी वजह से आजादी को हमने २५ वर्ष देर से पाया है
आज फिर वही वक्त खड़ा है समझो इस गंभीर बात को गलत हमेशा गलत ही होता गलती का मत साथ दो
हम तुमसे ज्यादा बड़ा हमारे लिये यह देश है इन नेताओ में सिवा भ्रष्टाचार के अब बोलो क्या शेष है
अब भी अगर तुम अपने-पराये में यूँ उलझ के रह जाओगे सच कहते है मित्र तुम्हे हम तुम भी बहुत पछताओगे
बस इसीलिए कहते है उठालो धनुष पर बाण चढ़ाके समझा दो इन देश शत्रु को कहीं और बसें अब जाके भ्रमित होकर प्रिय बंधु मत बापू को बदनाम करो भगतसिंह का हत्यारा कहकर मत उनका अपमान करो
फिरंगियों की साजिश थी वो बापू ना कोई हाथ था एक दिन पहले दे दी फांसी वरना जाग उठा इंकलाब था
मानता हूँ मैं की वो कह देते तो फांसी उनकी रूक जाती पर झोली ही फैलानी थी तो भीख में आजादी मिल जाती
हाँ वहीं फिर वक्त खड़ा है पर नहीं इस बार फिरंगी अपने देश को खा रहे बंधु अब तो अपने साथी-संगी
यह भी सच है हम तुम से यह "हिन्दोस्तां" बड़ा है नेताओं की रग-रग में राष्ट्र-द्रोह भरा पड़ा है
पर काट के उनको सड़को पे तुम कैसे भ्रष्टाचार मिटाओगे सच कहता हूँ करके ऐसा तुम सिर्फ आंतक ही फैलाओगे
हमे नहीं मिटाना बंधु किसी भी भ्रष्टाचारी को बस मिटाना है तो सिर्फ भ्रष्टाचार की बिमारी को
हर एक हिन्दुस्तानी को संगठित हमको करना है नेताओं के वोट बैंक को शिक्षित पहले करना है
शिक्षा का दीपक जब हर इक घर में जगमगाएगा देश हमारा फिर से "सोने की चिडिया" बन जाएगा
इसीलिए कहता हूँ बंधु शिक्षा का दीपक जलाओ मत हथियार उठाओ बंधु मत हथियार उठाओ
फिर से कलम उठाओ बंधु फिर से कलम उठाओ

वाह कविराज मजा आ गया. वाकई बहुत अच्छा लगा ये बहस पढ्कर.बधाई.
आपसे एक गुजारिश है कि गाँव से शहरों की ओर आजकल जिस गति से पलायन हो रहा है और शहर विकास की एक अंतहीन दौड में लगे हैं इस पर कुछ लिखें. इन्तज़ार रहेगा.

इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

good post i like the idea, youth really misinterpreate the whole concept of gandhiji on the issue of bhagat singh and pakistan but may b smaller much better.

i agree with the idea,youth has misinterpreted the concept of gandhi about bhagat singh and pak issue,but smaller will b much better

एक टिप्पणी भेजें

मेरा परिचय

  • नाम : गिरिराज जोशी
  • ठिकाना : नागौर, राजस्थान, India
  • एक खण्डहर जो अब साहित्यिक ईंटो से पूर्ननिर्मित हो रहा है...
मेरी प्रोफाईल

पूर्व संकलन

'कवि अकेला' समुह

'हिन्दी-कविता' समुह

धन्यवाद

यह चिट्ठा गिरिराज जोशी "कविराज" द्वारा तैयार किया गया है। ब्लोगर डोट कोम का धन्यवाद जिसकी सहायता से यह संभव हो पाया।
प्रसिद्धी सूचकांक :